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आर्यभट का जीवन परिचय । Aryabhatta biography in hindi.

आर्यभट का जीवन परिचय ।  Aryabhatta biography in hindi.


Aryabhatta biography in hindi.


Aryabhatta biography in hindi. भारत में कई महान व्यक्तियों ने जन्म लिया । कोई अच्छा राजा तो कोई बुद्धि के लिए जाना जाता है कोई अच्छा राजनेता तो कोई अभिनेता, कोई दानी तो कोई अभिमान के लिए लिए पूरे विश्व में जाना जाते है  और बात जब  खगोलशास्त्री की हो तो आर्यभट्ट ( Aryabhatt ) विश्वविख्यात है । भारत में पहले वैदिक काल में भी कई जाने माने खगोल शास्त्री हुए जैसे भास्कराचार्य, बोद्धयन, ब्रहगुप्त आदि  । आर्यभट्ट एक  खगोलशास्त्री और जाने माने गणितज्ञ थे ।  

गिनती के लिए किसी गणितज्ञ ने एक तो किसी ने दो । इस तरह तक एक से नौ  नंबरों का निर्माण किया। हमारे लिए ये गर्व की बात है एक भारतीय जिसने शून्य अर्थात जीरो का निर्माण किया जिसने गिनती को शुरुआत और अंत दिया और वो  महान व्यक्ति और कोई नहीं आर्यभट्ट थे।

शून्य ना होता तो शायद आज हम नो तक सीमित रहते, एक शून्य ने गिनती के नम्बर हो या  गिनती उनकी क्षमता बड़ा दी, अर्थात नंबर एक को ही के लिजिए वो नो नंबर से यू तो छोटा नंबर कहा जाता  हैं किन्तु एक शून्य के पीछे लग जाने से वो नो नंबर से बड़ा बन जाता है तो वहीं आगे भी एक के शून्य ही आता है अर्थात प्रारंभ और अंत भी सब शून्य से और शून्य की रचना करने वाले आर्यभट एक भारतीय थे ये भारतीयों के लिए गर्व की बात है। तो चलिए जानते Aryabhatta biography in hindi.

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आर्यभट्ट की जीवनी | Indian Mathematician Aryabhatt biography, Histoy in hindi.

  • पूरा नाम - आर्यभट्ट
  • जन्म  -    दिसंबर, 476 ई.
  • जन्म स्थान - अश्मक, महाराष्ट्र
  • कार्यक्षेत्र - गणितज्ञ, खगोलशास्त्री एवं ज्योतिषविद ।
  • कार्य स्थल -  नालंदा विश्वविद्यालय
  • रचनायें  - आर्यभटीय, आर्यभट्ट सिद्धांत
  • योगदान -  पाई एवं शून्य की खोज
  • मृत्यु - दिसंबर  550 ई ( 74 वर्ष )

आर्यभट्ट का जन्म कौनसे स्थान पर हुआ । Aryabhatta Birth Place and Education -

आर्यभट्ट का जन्म 476 ई. में महाराष्ट्र के अश्मक क्षेत्र में हुआ । हालांकि इनके जन्म स्थान को लेकर काफी मतभेद है कुछ इतिहासकार आर्यभट्ट का जन्मस्थान बिहार की राजधानी पटना में बता रहे है । जिसे उस जमाने में पाटलिपुत्र भी कहा जाता था । इतिहासकारो के मुताबिक आर्यभट्ट की शिक्षा पाटलिपुत्र के कुसुमपुर क्षेत्र में स्थापित विश्वविद्यालय से हुई थी । जो उस समय सबसे बड़ा विश्वविद्यालय माना जाता था । यहां सिर्फ यह कहा जा सकता है कि जन्मस्थान एवं शिक्षा से जुड़ी कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है ।

वही Aryabhatt के माता पिता, भाई बहिन एवं पत्नी के बारे अभी तक कोई जानकारी प्राप्त नहीं है । लेकिन जैसे कोई जानकारी उपलब्ध होगी । इस पर अपडेट कर दिया जायेगा ।

उन्होंने 23 वर्ष की उम्र में पहले ग्रंथ की रचना की । उन्होंने बताया कि जब वे 23 वर्ष के तब कलियुग के 3600 वर्ष व्यतीत हो चुके । उनकी प्रखर प्रतिभा को गुप्तवंश के राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया था । उन्होंने अपनी रचनाओं लेखन वही रह कर किया ।

आर्यभट्ट के प्रमुख ग्रंथ कौन कौनसे थे ? Aryabhatt ka yogdaan.

आर्यभट्ट एक महान भारतीय गणितज्ञ ( Indian mathematician ) थे । यह प्रखर बुद्धिमान एवं प्रतिभाशाली थे । जिन्होंने अपने जीवनकाल में अनेको रचनाओं की रचना की । लेकिन आधुनिक काल मे हमारे पास केवल 4 पुस्तकें उपलब्ध है जिनमें से तंत्र, आर्यभटीय, दशगीतिका और आर्यभट्ट सिद्धांत प्रमुख हैं । इन चार ग्रंथो में से आर्यभट्ट 3\-0 सिद्धांत ग्रन्थ अधूरा हैं यानी इनके केवल 34 श्लोक ही उपलब्ध है शेष नष्ट हो गए ।

आर्यभटीय नामक ग्रंथ सबसे लोकप्रिय कृति माना जा रहा है । इस ग्रंथ में बीजगणित, त्रिकोणमिति एवं अंकगणित का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है । इस ग्रंथ में कुल 121 श्लोक लिखे गए  है । इन 121 श्लोकों को कुल 4 भागों में विभक्त किया गया है । जो इस प्रकार से है -

पहले 13 श्लोक को गीतिकापद कहा गया है जिसमे हिन्दू कालगणना, सूर्य, चन्द्रमा, त्रिकोणमिति सहित अन्य ग्रहों के बारे विस्तृत वर्णन किया गया है ।

दूसरे भाग में कुल 33 श्लोक है जिसे गणितपद कहा गया है । जिसमें बीजगणित, रेखागणित व अंकगणित के बारे में विस्तृत व्याख्या की गई है ।

तीसरे भाग में कुल 25 श्लोक हैं जिसे कालक्रियापद कहा गया है जिसमे कालगणना, ग्रहों की गति सहित ज्योतिस्वरूप के बारे विस्तार से व्याख्या की गई है ।

चौथे भाग में कुल 50 श्लोक है जिसे गोलपद नाम दिया गया है । इसमें सूर्य व चन्द्र ग्रहण, ग्रहगति सहित अंतरिक्ष विज्ञान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है ।

आर्यभट्ट सिद्धांत ( Arya siddhanta ) नामक कृति में कई खगोलीय उपकरणों का उल्लेख किया गया है जैसे शंकु यन्त्र, छाया यन्त्र, बेलनाकार यस्ती यन्त्र, छत्र यन्त्र, जल घडी, कोण मापी उपकरण, धनुर यंत्र / चक्र यंत्र आदि प्रमुख है ।

Aryabhatt ka yogdaan.


आर्यभट्ट का गणित के क्षेत्र में क्या योगदान था । Aryabhatta Contribution in hindi. 

पाई की खोज । Pi ( π ) Invention -

Indian Mathematician Aryabhatt ने खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र एवं गणित के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । उन्होंने पाई की खोज की जिसका मान दशमलव के 4 अंकों तक कर दिखाया । उन्होंने कहा कि यदि 100 में 4 जोड़ने के बाद 8 से गुणा करने के बाद 62000 जोड़कर 20000 का भाग देने पर जो उत्तर प्राप्त होगा वह एक पाई ( π ) के बराबर होगा । 

पृथ्वी की परिधि । Earth Circumference -

महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि की गणना की । जो आधुनिक विज्ञान के लिए भी चुनौती से कम नहीं है । उन्होंने बताया कि पृथ्वी की लंबाई 39,968.05 किलोमीटर है जो इनकी वास्तविक लंबाई जो 40,075.01 किलोमीटर हैं जिनसे केवल 0.2% कम है । 

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शून्य (0) की खोज । Zero Invention -

गणितज्ञ आर्यभट्ट ने शून्य की खोज करके सभी को हैरानी में डाल दिया । उन्होंने कहा कि किसी संख्या के आगे शून्य लगाने से उस संख्या का मान दस गुना बढ़ जाता हैं जैसे 1 के आगे 0 लगाने से 10 हो जाता है ।

त्रिकोणमिति । Aryabhatta Contribution in Trigonometry -

आर्यभट्ट का त्रिकोणमिति के जन्मदाता के रूप में सबसे बड़ा योगदान रहा है । उन्होंने आर्य सिद्धांत में sin, cosine, versine एवं inverse sine की परिभाषा दी । उन्होंने सर्वप्रथम ज्या (sin), वर्साइन (versine) (1 − cos x) की सारणी  3.75° के अन्तराल पर 0° से 90°तक के कोण का निर्माण किया । 

बीजगणित । Aryabhatta Contribution in Algebra -

बीजगणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । उन्होंने वर्गों एवं घनो के सूत्रों का निर्माण किया । जिनके आधार पर आज क्षेत्रफल निकलना आसान हो गया । उन्होंने त्रिभुज का सूत्र बताया ।

आर्यभट्ट का खगोल विज्ञान में क्या योगदान था  । Aryabhatta Contribution in astronomy -

खगोल विज्ञान के क्षेत्र में आर्यभट्ट ने अहम योगदान दिया उन्होंने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर घूमती रहती है । जो भी परिवर्तन होता है केवल खगोलीय क्षेत्र में होता है । पृथ्वी घूमती हुई सूर्य की परिक्रमा करती है जो एक चक्कर 23 घण्टे 56 मिनट में पूरा होता है । जिसे दिन - रात कहा जाता है । इसी प्रकार  365 दिन, 6 घण्टे 12 मिनट व 30 सेकेंड का एक साल होता है । उन्होंने सूर्य व पृथ्वी की दूरी 15 करोड़ किमी बताई ।

इस प्रकार आर्यभट्ट ने सूर्य व चन्द्र ग्रहण पर अपने विचार व्यक्त किए । उन्होंने कहा चंद्र व अन्य ग्रहों का खुद का प्रकाश नहीं होकर के वे सूर्य के प्रकाश से चमकते है । जब इनके बीच तीसरा ग्रह अर्थात पृथ्वी आ जाती है तब ग्रहण जैसी घटना होती हैं ।

आर्यभट्ट का ज्योतिष के क्षेत्र में क्या योगदान था । Aryabhatta Contribution in astrology.

Aryabhatt ने केवल गणित, खगोल शास्त्र पर खोज की बल्कि उन्होंने ज्योतिष सिद्धांत भी बताए । उन्होंने काल गणना, ग्रह - नक्षत्रों की गणना की । जिनका उपयोग आज कई देश कर रहे है । 

वर्तमान कलेंडर का निर्माण उसी अनुसार हो रही है । शुद्ध ज्योतिष आर्यभट्ट की देन हैं । ज्योतिष सिद्धांत पर भारत देश हो अथवा विश्व उनका काफी प्रभाव रहा है। यूं तो भारत में  कई महान गणितज्ञ हुए किन्तु आर्यभट्ट का योगदान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने 120 आर्य छंदों में ज्योतिषशास्त्र के सिद्धांत और उसी से सम्बन्धित गणित को सूत्र रूप में  आर्यभटीय ग्रंथ में लिखा है ।

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आर्यभट्ट का जन्म व मृत्यु कब हुई थी । Aryabhatt death -

आर्यभट का जन्म विक्रमादित्य द्वितीय के समय अर्थात सन् 476 में   पटना भारत ( पाटलिपुत्र के कुसुमपुर)में हुआ था ।ये गुप्त  काल में जन्मे थे। कुछ  मान्यताओं के अनुसार  उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक में हुआ था।  उनके वैजनिक कार्य राजधानी में ही पूर्ण हो सकते थे अत:  वे एक लंबा फासला तय कर कुसुमपुर में राज सानिध्य में कार्य करने लगे। वे भट्ट  बहमभ्ट्ट समुदाय में उत्पन्न हुए ऐसा माना जाता है। उनकी योग्यता को देखते हुए गुप्तवंश के विक्रमादित्य द्वितीय ने उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त कर दिया और अपनी ताउम्र वही रहे । उनकी मृत्यु 74 वर्ष की उम्र में 550 ई में हुई ।

आर्यभट्ट की विरासत । Aryabhatt ki virasat. -

आर्यभट्ट गुप्तकाल के एक ऐसे वैज्ञानिक थे । एक ऐसे खगोलशास्त्र के ज्ञाता थे जिन्होंने जीरो की खोज की । उस दौर इस चीज़ों के कोई जानकारी नहीं थी । आज 1500 साल बाद भी उनकी खोज का कोई खंडन नहीं कर पाया । वर्ष 1976 में पहली बार विश्व की सबसे बड़ी संस्था यूनेस्को ने उनकी जयंती मनाई । 

19 अप्रैल 1975 में भारत का पहला उपग्रह छोड़ा गया जिसका नाम इस महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था । इस महान गणितज्ञ के नाम पर विज्ञान अनुसन्धान केंद्र नैनीताल में बनाया गया । वही 2 रुपये के नोट पर पीछे की तरफ आर्यभट का चित्र दिया । 

उनके अध्ययन एवं कार्यस्थल रहा नालन्दा विश्वविद्यालय को सबसे बड़ा बनाया गया । ISRO ने वायुमंडल के संताप मंडल में खोजे गए जीवाणुओं में से एक प्रजाति का नाम बैसिलस महान गणितज्ञ 'आर्यभट्ट' पर रखा गया था । 

उनके द्वारा की गई खोज आज दुनिया का हर विद्यार्थी सीख रहा है । उनके रचनाओं का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में जैसे अरबी, फ़ारसी व अंग्रेजी में हुआ । 

तो उम्मीद करते हैं आज की जानकारी Aryabhatta biography in hindi. उपयोगी साबित हुई होगी । आप अपने विचार कमेंट बॉक्स में लिखे ।


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