वीर बाल दिवस पर निबंध । Essay on veer bal diwas in hindi.
Essay on veer bal diwas in hindi. जैसा कि आप सभी जानते है कि प्रतिवर्ष 14 नवम्बर को चाचा नेहरू के जन्मदिन के अवसर पर बाल दिवस मनाते रहे हैं । लेकिन सरकार ने एक और बाल दिवस के मनाने की घोषणा की है जिसे Veer bal diwas कहा जाता है । वीर बाल दिवस क्यो मनाया जाता है ? इसके बारे में पिछले लेख पढ़ चुके है ।
वीर बाल दिवस महत्वपूर्ण दिवस है । इस दिन सिखों के गुरु गोबिंद सिंह के सहजादों ने धर्म की रक्षा के लिए शहादत को प्यारे हो गए । तो चलिए जानते है - वीर बाल दिवस क्या है ? -
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वीर बाल दिवस क्या है ? Veer bal diwas kya hai.
वीर बाल दिवस सिख धर्म के 10वे गुरु गोविंद सिंह ( Guru Govind singh ) के सहजादों साहिब अजित सिंह, साहिब जुझार सिंह, साहिब जोरावर सिंह एवं बाबा फतेह सिंह की शहादत के दिन मनाया जाता है । कहा जाता है कि इन साहिबजादों ने अपने जीते जी मुगलो की अधीनता एवं धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया था जिसे मुगल सेनापति ने इन्हें जिंदा दीवार में चुनाव दिया था ।
इनकी शहादत की स्मृति में प्रतिवर्ष 26 दिसम्बर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है । यहां हम आपको बता दें कि सिख समुदाय के लोग उसी दिन से इस पूरे सप्ताह को वीर शहीदी सप्ताह मनाता रहा है । इन 7 दिनों में यानी 22 दिसम्बर से 28 दिसम्बर में गुरूद्वारे में भजन कीर्तन, लंगर आदि का आयोजन किया जाता है । वही स्कूलों में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता का आयोजन होता है और सहजादों के किस्से कहानियां सुनाते हैं ।
वीर बाल दिवस का इतिहास | history of veer bal diwas.
17वी शताब्दी तक मुगल शासक औरंगजेब ने भारत की अधिकतर रियासतों को अपने अधीन कर लिया था । वही जबरन धर्म परिवर्तन की हठधर्मिता अपने चरम पर थी । उधर पंजाब में सिखों के 10वे गुरु गोविंद सिंह ने उनकी अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया । जिसे मुगल सेनापति वजीर खान गुरु गोविंद सिंह को पकड़ने की फिराक में था । उसने कही प्रयास किए पर सफल नहीं हुआ ।
आखिर कार उनका मुकाबला पंजाब के चमकौर नामक स्थान पर सन 1705 में हुआ । जो भारतीय इतिहास में चमकौर युद्ध के नाम से जाना जाता है । कहा जाता है यह युद्ध गुरु गोविंद सिंह के नेतृत्व में लड़ा गया था । जिसमे गुरु गोबिंद सिंह के बड़े साहिबजादे अजित सिंह जिनकी आयु 17 वर्ष की थी । उनका जन्म 26 जनवरी 1687 को पांऊटा साहिब में हुआ । साहिब जुझार सिंह जो मात्र 15 वर्ष के थे, जिनका जन्म 14 मार्च 1693 को आंनदपुर साहिब में हुआ । साहिबजादा जोरावर सिंह जी ने ( जिनका जन्म 17 नवम्बर 1696 को हुआ । जो उस समय 9 वर्ष के थे ) एवं बाबा फतिह जी जिनका जन्म 26 फरवरी 1699 को आंनदपुर में हुआ । जो केवल 7 वर्ष के थे ) सहित कुल 43 सिखों की फौज थी । उधर मुगल सेना में सैनिकों की सख्या अधिक थी ।
इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि अधिकतर सिख फौज ही नहीं साहिबजादा अजित सिंह एवं साहिब जुझार सिंह वीरगति को प्राप्त हुई । उधर सरहिंद से गुरु गोविंद सिंह के छोटे सहजादों को पकड़ कर ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया । उन पर लगातार 6 दिनों तक अत्याचार किया । उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए प्रलोभन दिया । उन्हें कठोर यातनाए दी गई हैं । मगर वो अपनी जिद्द पर अडिग रहे है ।
वजीर खान ने उसे माता गुजरी से मिलने की अनुमति दी । ताकि उनमे कोई बदलाव आए । अंत में उन्हें कोतवाली में पेशी के लिए बुलाया गया । यह पेशी मलेर कोटला के नबाब शेर मुहम्मद खां के समक्ष की गई । जहां पर नवाब ने बच्चों को अनेकों दलीलें सुनाई । उन्हें जान माल की धमकियां दी । मगर उन बच्चों ने जबरदस्ती से कराए जाने वाले धर्म को जायज नहीं माना । आखिर में नवाब ने उन्हें दीवार में चुनवाने का फतवा जारी कर दिया ।
वीर बाल दिवस पर निबंध । Essay on veer bal diwas in hindi.
गुरु गोविंद सिंह के दोनो छोटे सहजादों को दीवार में चुनवाने से पहले उन्हें अनेको कठोर यातनाएं जैसे सर्दी में बिना कपड़ों में रहना, भूखें रखना आदि मगर उन्होंने ने अपने सिद्धांतों को नहीं बदला । उन्हें चुनवाने के लिए दिल्ली से शाही जल्लाद बुलाये गए जिनका नाम शासल बेग और बासल बेग था ।
शहादत के आतुर गुरु के सहजादे दीवार पर खड़े होकर पाठ करने लगे । जैसे जैसे दीवार ऊपर उठती गई । सहजादे मौत से बेखर अडिग रहे है । अंत में वे बेहोश हो गए । औऱ उसी दिन यानी 26 दिसम्बर 1705 को उनका सर काट दिया गया । जिससे वे शहादत को प्राप्त हुए ।
उसी दिन से सिख धर्म के लोग शहीदी सप्ताह के रूप वे उन्हें याद करते है । औऱ भारत सरकार ने प्रतिवर्ष 26 दिसम्बर को इन सहजादों की याद में वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा की है । जिनका पहला वीर बाल दिवस ( veer bal diwas ) 26 दिसम्बर 2022 को देशभर में मनाया जाएगा ।
वीर बाल दिवस का महत्व -
वीर बाल दिवस के दिन गुरु गोविंद सिंह के सहजादों की शहादत को याद किया जाता है । इन बाली उम्र के सहजादों ने परिपक्व जैसा कारनामा कर दिखाया । उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा । उन्होंने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का त्याग कर दिया । उनकी यह शहादत अतुलनीय है ।
उनकी शहादत के दिन को वीर बाल दिवस के रूप में मनाकर उन शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देना है । इन साहिबजादों की वीरता, बहादुरी एवं समझदारी के किस्से कहानी हमे धर्म एवं मानवता की रक्षा करने की प्रेरणा देते है ।
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