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वीर बाल दिवस क्यो मनाया जाता है ? कारण व इतिहास | Veer bal diwas in hindi

वीर बाल दिवस क्यो मनाया जाता है ? कारण व इतिहास | Veer bal diwas in hindi.


Veer bal diwas in hindi.


Veer bal diwas in hindi. भारत भूमि में कई वीर बालकों ने जन्म लिया और देश और धर्म के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी और अपने साहसिक वीरतापूर्ण कार्यों से केवल भारतवर्ष ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया।  इन वीर बालकों में श्री राम, श्री कृष्ण, प्रहलाद, ध्रुव, लव-कुश, वीर अभिमन्यु, साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह, साहिबजादा फ़तेह सिंह, वीर हकीकत राय, खुदी राम बोस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 09 जनवरी 2022 को  'साहिबजादों' के साहस और न्याय स्थापना की उनकी कोशिश को उचित श्रद्धांजलि देते हुए सिखों के दशमे गुरु गोबिंद सिंह जी के उन चारों पुत्रों बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए हर वर्ष 26 दिसंबर के दिन वीर बाल दिवस ( Veer bal diwas )  मनाने की घोषणा की थी । 

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वीर बाल दिवस क्यो मनाया जाता है ? veer bal diwas in hindi.

वीर बाल दिवस उसी दिन (26 दिसंबर) मनाया जाएगा जब साहिबजादा जोरावर सिंह जी (आयु 08 वर्ष) और साहिबजादा फ़तेह सिंह जी (आयु 05 वर्ष) को मुगल सेना द्वारा सरहिंद के नबाव वजीर खान के आदेश  से सरहिंद (पंजाब) में जिंदा दीवार में चुनवा दिए जाने के बाद उन दोनों बहादुर बालकों ने वीरगति प्राप्त की थी। इन दो वीर बालकों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मृत्यु को चुना। उनके बलिदान को याद करने के veer bal diwas मनाया जाता है ।

इन वीर बालको का बलिदान हमेशा याद दिलाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी धर्म का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए । हमे सदैव सत्य एवं धर्म की राह पर चलना चाहिए ।

वीर बाल दिवस का इतिहास । Veer bal diwas history in hindi.

इस महान शहादत को गुरु गोविंद सिंह के परिवार की आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। अत्याचारी के आगे तनकर खड़े रहने और धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने की यह घटना भावी पीढ़ी के लिए एक मिसाल बन गई। तभी गुरु जी को सरवंशदानी कहा जाता है।

गुरू गोबिन्द सिंह के बड़े साहिबजादें बाबा अजीत सिंह जी (आयु 17 वर्ष) और बाबा जुझार सिंह जी  (आयु 13 वर्ष)  चमकौर के युद्ध में मुगलों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे और उन्होंने ये शहीदी 20 दिसंबर और 27 दिसंबर 1704 के बीच पाई। श्रद्धावान लोग आज भी हर वर्ष सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, 20 दिसंबर से लेकर 27 दिसंबर तक शहीदी सप्ताह' मनाते हैं। इन दिनों गुरुद्वारों से लेकर घरों तक में बड़े स्तर पर कीर्तन-पाठ किया जाता है। इस दौरान बच्चों को गुरु साहिब के परिवार की शहादत के बारे में बताया जाता है। साथ ही कई श्रद्धावान सिख आज भी इस पूरे सप्ताह को जमीन पर सोते हैं और माता गुजरी और साहिबजादों की शहादत को नमन करते हैं।

प्रमुख बिंदु

साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बारे में - 

1. साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा  जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह सिख धर्म के सबसे सम्मानित शहीदों में से हैं।

2. साहिबज़ादा बाबा अजीत सिंह का जन्म 11 फ़रवरी 1687 को  हुआ था। 

3. साहिबज़ादा बाबा अजीत सिंह जी सिखों के दसवें गुरू गोबिंद सिंह जी के चार पुत्रों मे से बडे़ थे। माता सुंदरी के गर्भ से इनका जन्म हुआ था। ये माता सुंदरी के एकमात्र पुत्र थे। 

4. बाबा अजीत सिंह के तीन छोटे भाई ( सौतेले  ) थे जिनकें नाम हैं  साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह ,  साहिबजादा बाबा जुझार सिंह और साहिबजादा  बाबा फतेह सिंह। इन तीनों साहिबजादों का जन्म माता जीतो के गर्भ से हुआ था। जो  गुरु गोबिंद सिंह की पहली पत्नी थी।

Veer bal diwas in hindi.

5. साहिबजादा बाबा जुझार सिंह का जन्म 14 मार्च 1691 आनंदपुर साहिब में हुआ था। आप गुरु गोबिंद सिंह के दूसरे पुत्र थे। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार आप का जन्म 09 अपैल  1691 को मनाया जाता है।

6. बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह को चमकौर की लड़ाई में वीरगति प्राप्त हुई थी। 

7. आज गुरुद्वारा कत्लगढ़, चमकौर साहिब में उस स्थान पर स्थित है यहाँ पर साहिबजादा बाबा अजीत सिंह  और साहिबजादा बाबा जुझार सिंह ने वीरगति पाई थी।

8. पंजाब के मोहाली शहर का नाम साहिबजादा अजीत सिंह नगर रखा गया है।

9. साहिबजादा जोरावर सिंह का जन्म 28 नवंबर 1696 को हुआ जो गुरु गोबिंद सिंह जी तीसरे पुत्र  थे।

10. 12 दिसम्बर के दिन साहिबज़ादा फ़तेह सिंह जी का जन्म आआनन्दपुर में हुआ। आप गुरू गोविन्द सिंह जी के चार पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र थे।

11. मुगल सैनिकों ने औरंगजेब (1704) के आदेश पर आनंदपुर साहिब को घेर लिया। गुरु गोबिंद सिंह के दोनों पुत्रों को पकड़ लिया गया।

12. मुसलमान बनने पर उन्हें न मारने की पेशकश की गई थी।

13.  उन्हें मौत की सजा इसलिए दी गई क्योंकि उन्होंने इनकार कर दिया । उन्हें जिंदा ईंटों की दीवार में चुनवा दिया गया। इन वीर शहीदों ने अपने धर्म के सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मौत का रास्ता चुना ।

14. इस्लाम को कबूल न करने पर दोनों बालकों को 26 दिसंबर 1704 को सरहिंद, पंजाब में जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया था।

15. जिस स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह के दोनों पुत्रों का अंतिम संस्कार किया गया था, वह स्थान आज फतेहगढ़ साहिब के नाम से जाना जाता है।

Veer bal diwas in hindi.

कहानी शहीदी सप्ताह की | Veer Bal diwas ki kahani. -

वो वर्ष 1704 का दिसंबर महीना था मुगलों की सेना और पहाड़ी राजे एकजुट हो गए।। मुगल सेना ने 20 दिसंबर 1704 को कड़कड़ाती ठंड में अचानक आनंदपुर साहिब किले पर आक्रमण कर दिया। सिखों ने बड़ी दिलेरी से मुगल सेना का मुकाबला किया और सात महीने तक आनंदपुर किले को मुगल सेना के हाथ नहीं लगने दिया। धीरे-धीरे अन्न का भंड़ार समाप्त होने लगा। गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों को सबक सिखाना चाहते थे, लेकिन उनके दल में शामिल सिखों ने खतरे को भांपकर वहां से निकलने में ही भलाई समझी। गुरु गोबिंद सिंह भी जत्थे की बात मानकर पूरे परिवार के साथ आनंदपुर किला छोड़कर रोपड़ के लिए चल पड़े। जब मुगलों को ये पता लगा तो मुगलों की सेना ने गुरु जी पर हमला कर दिया।  सरसा नदी में पानी का बहाव बहुत तेज था। इस कारण नदी पार करते वक्त गुरु गोबिंद सिंह का परिवार बिछुड़ गया।

Veer bal diwas ki kahani.


चमकौर की गढ़ी में बड़े साहिबजादों की शहादत -

गुरु गोबिंद सिंह के साथ दो बड़े साहिबजादों - बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। चमकौर की गढ़ी में गुरु जी और उनके दो बड़े साहिबजादों ने मोर्चा संभाला। इस युद्ध में 80 हजार मुगलों से केवल 40 सिखों ने मुकाबला किया। गुरु गोबिंद सिंह ने पाँच-पाँच सिखों का जत्था बना कर, उन्हें युद्ध के मैदान में भेजा। दोनों बड़े साहिबजादें बाबा अजित सिंह और बाबा जुझार सिंह मुगलों से मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। 


माता गुजरी और छोटे साहिबजादों का परिवार से बिछड़ना -

वहीं दूसरी ओर सरसा नदी पार करते समय गुरु गोबिंद सिंह की माता गुजरी जी, अपने दोनों छोटे पोतों - बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह अन्य परिवारिक सदस्यों से बिछड़ गए। उनके साथ गुरु साहिब का रसोइया सेवक गंगू भी था। वो माता गुजरी को उनके दोनों पोतों समेत अपने घर ले आया । कहा जाता है कि सोने के सिक्कों को देखकर सेवक लालच में आकर उसने इनाम पाने के लिए कोतवाल को माता गुजरी की खबर दी।

माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों की गिरफ्तारी -

माता गुजरी अपने दोनों छोटे पोतों - बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के साथ गिरफ्तार हो गईं। सरहिंद के नबाब वजीर खान ने उन्हें कड़कड़ाती सर्दी में ठंडे बुर्ज में बन्दी बना लिया। माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को कर्तव्य निष्ठा का पाठ पढ़ाया। 

Veer bal diwas in hindi.

भाई मोती राम मेहरा की गुरु परिवार के प्रति निष्ठा -

सरहिंद के नवाब ने भाई मोती राम मेहरा को हिंदू कैदियों को भोजन कराने के लिए नियुक्त किया गया था । जब उन्हें सूचना मिली कि माता जी एवं उनके साहिबजादों के ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया गया । तो कोरे मिट्टी के बर्तन में गर्म दूध भरकर वह ठंडे बुर्ज में पहुँच गया। वह अच्छी वाफिक थे कि बुर्ज के पहरेदार हर हाल में गर्म दूध का बर्तन बुर्ज के भीतर नहीं पहुंचने देंगे, इसलिए जाते समय पहरेदारों को रिश्वत देने के लिए वह अपनी पत्नी तथा माँ के जेवर तथा कुछ पैसे भी अपने साथ ले गया। मोती राम मेहरा लगातार तीन रातों तक पहरेदारों को रिश्वत देकर माता जी तथा साहिबजादों को गर्म दूध पिलाने के लिए ठंडे बुर्ज में जाते रहे। बाद में जब नवाब को इसकी जानकारी मिली तो उसने मोती राम मेहरा तथा उसकी वृद्ध माँ, पत्नी व इकलौते पुत्र को कोहलू में हुक्म जारी करके शहीद कर दिया।


माता गुजरी और छोटे साहिबजादों की शहादत -

माता गुजरी और उनके दोनों पोतों को सरहिंद के नवाब वजीर खान के सामने पेश किया गया। नबाव वजीर खान ने बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को इस्लाम स्वीकार करने को कहा। इसके लिए उसने उनको लालच तक दिया और बहुत डराया धमकया, पर दोनों ने बिना किसी डर और लालच के धर्म बदलने से मना कर दिया तो नवाब वजीर खान ने 26 दिसंबर 1704 को दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया। वहीं, माता गुजरी को सरहिंद के किले से धक्का देकर मार दिया।

दीवान टोडरमल ने माता गुजरी और दोनों साहिबजादों के अंतिम संस्कार के लिए 78000 सोने के सिक्कों से मात्र 4 वर्ग मीटर जमीन खरीदी । साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने के बाद व बेरहमी से शहीद करके माता गुजरी जी और दोनों साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह के पार्थिव शरीर वर्तमान स्थित गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब के पीछे जंगल में रखें गए। इसी क्षेत्र के धनी तथा मुगल दरबार के कर्मचारी दीवान टोडरमल ने नवाब वजीर खान से पार्थिव शरीर लेकर उनका अंतिम संस्कार करने की अनुमति मांगी।

 इस पर नवाब ने संस्कार के लिए स्वर्ण मोहरें बिछा कर भूमि देने के लिए शर्त रख दी और टोडर मल जी तैयार हो गए। जब सिक्कें बिछाए जाने लगे तो वजीर को लालच आ गयी, उसने कहा पड़े सिक्कें नहीं, खड़े सिक्कों से नापो, तब टोडरमल जी अपने सारे सिक्कें बिछा डालें। कुल 78000 सोने के सिक्कें बिछाये गए और 4 वर्ग मीटर जमीन खरीदी गयी। उस समय के हिसाब से 78000 सोने के सिक्कों की कीमत 2 अरब 50 करोड़ रुपये थी। जो आजतक की सबसे महंगी जमीन की कीमत थी। दुनियाँ में इतनी बड़ी कीमत पर इतनी कम जमीन आज तक किसी ने नहीं खरीदी। हमारे इतिहास में विश्व की सबसे महँगी जमीन खरीदने का रिकॉर्ड टोडरमल जी के नाम से दर्ज़ है। उसी 4 वर्ग मीटर जमीन पर दीवान टोडरमल जी ने गुरु गोबिंद सिंह जी की माता गुजरी जी और उनके दोनों साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह का अंतिम संस्कार किया।

Veer bal diwas in hindi.

गुरु परिवार के प्रति इस वफादारी के बदले बाद में नवाब वजीर खान  ने दीवान टोडरमल की हवेली तथा उनकी शेष संपत्ति नष्ट करवा दी।

भाई मोती राम मेहरा तथा उनके परिवार की शहादत और दीवान टोडरमल जी की गुरु घर के प्रति निष्ठा तथा समर्पण अपने आप में इतिहास में एक अनूठी मिसाल है, जिस के चलते उनका नाम भारतीय सिख इतिहास में हमेशा के लिए सम्मान तथा सत्कार से लिया जाता रहेगा।

बंदा सिंह बहादुर ने वजीर खान का सर कलम कर दोनों साहिबजादों की मौत का बदला लिया

12 मई 1710 को, छप्पर चिरी की लड़ाई में, बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद के नवाब वज़ीर खान और दीवान सुचानंद को मार डाला, जो गुरु गोबिंद सिंह के दोनों छोटे पुत्रों जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह की शहादत के लिए जिम्मेदार थे।


वीर बाल दिवस कब मनाया जाता है ? Veer bal diwas 2022 -

09 जनवरी को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने छोटे साहिबजादों के बलिदान को याद करने के लिए 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में घोषित किया। सिख समाज ने इसका स्वागत भी खुले दिल से किया। धनबाद के सिख समुदाय ने भी प्रधानमंत्री के इस कदम की सराहना करते हुए कुछ सुझाव दिया है। संभवत धनबाद देश का पहला ऐसा गुरुद्वारा, जिसने पीएम की घोषणा का स्वागत करते हुए वीर बाल दिवस की जगह वीर साहिबजादे दिवस करने की मांग की है।

सिखों ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस की जगह वीर साहिबजादे दिवस करने का निवेदन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से किया है। उनका कहना है - सिख समाज चार साहिबजादों के बलिदान को बहुत बड़े बलिदान का दर्जा देता हैं । जो काम बड़े-बड़े योद्धा नहीं कर पाए उसे साहिबजादों ने कर दिखाया । इसलिए हम साहिबजादों को बाबा कह कर संबोधित करते हैं।

 प्रधानमंत्री से बड़ा गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी, धनबाद निवेदन करता है कि वीर बाल दिवस नाम बदल कर वीर साहिबजादे दिवस या साहिबजादे दिवस की घोषणा कर हमें नवाज़ा जाए। ऐसा करने से सिख समाज में अच्छा संदेश जाएगा और सिख संगत का मान भी बढ़ेगा।


Veer bal diwas का महत्व -

 वर्तमान राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक स्थिति में सभी लोगों के अपने-अपने स्वार्थ हैं। लोगों में सुखी जीवन जीने की लालसा बढ़ गई है और लोग भौतिकवाद के पीछे भाग रहे हैं। वे लोग अपना कर्तव्य भूल गए हैं कि देश के प्रति, समाज के प्रति और धर्म के प्रति उनके क्या-क्या कर्तव्य है। उन लोगों के लिए ये कथा और वीर बाल दिवस' एक प्रेरणा का कार्य करेगा। 

 वीर बाल दिवस का नाम जो भी हो परंतु साहिबजादों के शौर्य और बलिदान को यह प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की ओर से दिया गया बड़ा सम्मान है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में घोषित करना एक सराहनीय कदम है। इस से देश के बच्चों में देश प्रेम, साहस, कर्तव्य निष्ठा, दृढ़ संकल्प, बलिदान की भावना का विस्तार होगा और वो देश के सच्चे योद्धाओं से परिचित होंगे, जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन की परवाह तक नहीं की और सब सुखों का त्याग कर दिया।

इस प्रकार धर्म की रक्षा के लिए साहिबजादों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी । भावी पीढ़ी के लिए गुरु गोबिंद सिंह के परिवार की शहादत एक प्रेरणादायक अदभुत मिसाल है।। लोकेश कुमार जोशी ।।

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