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गुरू तेग बहादुर सिंह पर निबन्ध । essay on Guru Teg bahadur in hindi.

गुरू तेग बहादुर सिंह पर निबन्ध । essay on Guru Teg bahadur in hindi.


essay on Guru Teg bahadur in hindi.


Essay on Guru Teg bahadur in hindi. सिक्खों के प्रथम गुरू से लेकर अपने साहस, शौर्य व शक्ति से इनसे जमकर हमेशा लोहा लिया । मगर धैर्य सँजोये रखा। हमारे नवें गुरू, गुरू तेग बहादुर सिंह का सामना, आततायी व आक्रांता, क्रूर शासक मुगलिया सम्राट औरंगजेब से हुआ। गुरू जी से और खूँखार औरंगजेब की नूरा कुश्ती चलती रही । उसका कारण उस आततायी का उद्देश्य भारत की भू धरा पर चाहे अनचाहे या बलात् इस्लाम धर्म को मनवाना था मगर भारतीयों जो कायर थे वे तो उसके आदेश मान लेते थे लेकिन जो धर्मभक्त, देशभक्त थे, जो नहीं मानना चाहते थे ।

Guru Teg bahadur ने जमकर मुगल शासक औरंगजेब से लोहा लिया । उन्होंने अपने जीते जी इस्लाम कबूल करना तो दूर हिन्दू धर्म के लोगो की रक्षा की । यही कारण है आज भी उन्हें हिन्द की चादर कहा जाता है तो चलिए जानते है - Essay on Guru Teg bahadur in hindi.

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 गुरू तेग बहादुर सिंह पर निबन्ध 500 शब्दों में । Essay on Guru Teg bahadur in hindi.

सनातन धर्म के हिन्दू धर्म से कुछ अलग हटकर किसी विशेष उद्देश्य को मद्देनजर रखते हुए बना जिसकी अन्तिम रूपरेखा भारत के उत्तरी पश्चिमी पंजाब में सन् 1699 ई. में 13 अप्रैल को  गुरू गोविंद सिंह साहिब ने विशाखी के दिन अंतिम रूप दिया।

भारत की इस पावन धरा पर आततायी व आक्रांताओं मुगलों से लोहा लेने वाले सपूतों में  सिक्ख सम्प्रदाय का नाम आदर से लिया जाता है उसी मे से एक गुरु तेगबहादुर सिंह जी का भी है, ये सिक्खों के नवें गुरू भी थे। इतना ही नहीं इनके द्वारा लिखे गये 116 पद्य आज भी सिक्खों द्वारा बड़े आदर व सम्मान के साथ, जो गुरू ग्रन्थ साहिब में मौजूद हैं, पढ़े जाते हैं, कीर्तन किए जाते हैं।

कश्मीरी पंडितों के साथ ही इन्होंने भी आततायी मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा जबरन इस्लाम स्वीकार्य नहीं है का उद्घोष  बुलंद किया । जिसमें सन् 1675 ई. में उपस्थित जन समूह के सामने  उस क्रूर शासक ने धड़ से सर अलग करा दिया था। गुरूद्वारा शीशगंज तथा गुरूद्वारा रकाबगंज, उन स्थलों का आज भी सारण सिक्खों द्वारा कराया जाता है। यही नहीं, जहाँ गुरू जी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया।

गुरू तेग बहादुर सिंह जी का जन्म पंजाब के अमृतसर  नगर में हुआ था। ये गुरु हर गोविंद सिंह जी के पाँचवे पुत्र थे। आठवें गुरू हरि कृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण ये जनमत द्वारा नवें गुरू के रूप में चुने गये। इसके बाद इन्होनें आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया  तथा वहीं रहने भी लगे थे।

गुरू तेगबहादुर सिंह जी का बचपन का नाम त्यागमल था। इतिहास  में एक बात बड़े आदर से कही जाती है और वह यह थी कि त्यागमल जी मात्र  14 बर्ष की आयु में ही अपने पिताजी के साथ मुगलों से युद्ध किया था। इनकी वीरता न निर्भीकता से प्रभावित होकर इनका नाम त्यागमल से तेगबहादुर कर दिया।

त्याग से अर्थ  तेग तात्पर्य तलवार और मल का अर्थ धनी से लिया गया । त्यागमल का अर्थ तलवार का धनी अर्थात तेगबहादुर हो गया। गुरु तेग बहादुर ने बाबा वकाला नामक स्थान पर बैठकर लगभग बीस बरसों तक कठिन तपस्या की।

संसार को ऐसे बलिदानियों से यह सीख मिलती है कि जिन्होंनें अपने प्राणों की परवाह न करके धर्म व सत्य का त्याग नहीँ किया और न ही लालच के वशीभूत होकर उस नीच व क्रूर, आततायी व आक्रान्ता मुगल औरंगजेब के सामने सर झुकाना ही पसन्द किया। 

हमारे आदर्श गुरू जी ने आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देना मुनासिब समझा कि जिस देश, जाति, पंथ, धर्म में हम जिए, जिसका अन्न व जल ग्रहण किया,उस भारत माँ की रक्षा न करके उन नर पिशाचों के सामने सिर झुका दें, किसी भी स्तर पर ठीक नहीं है। ऐसी नारकीय जीवन से बेहतर शहीद हो जाना ही श्रेयस्कर है। गुरू तेग बहादुर सिंह जी उस क्रूर, आततायी नीच से जमकर लोहा लिए, अन्ततः बलिदान हो गये। 

श्री गुरू तेग बहादुर सिंह जी अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के  अधिकारों व विश्वासों के लिए मुगलों से आजीवन लोहा लिए, मगर आज की ही तरह उस समय के गद्दारों के आगे उनकी न चल सकी और बलिदान हो गये।

श्री गुरू तेग बहादुर सिंह जी जहाँ जहाँ गये लोग उनकी बातों व पराक्रम से शिक्षाओं से बिना प्रभावित हुए नही रह पाते थे। अधिक क्या कहा जाय उदाहरण हेतु यही कहा जा सकता है कि नशा उन्मूलन में तम्बाकू प्रयोग न करने के बजाय औद्योगिक खेती के रूप में की जाने वाली तम्बाकू की खेती को करना ही छोड़ दिये। 

वैसे गुरू तेग बहादुर सिंह जी की शिक्षा क्या थी जो उल्लेख मिलता है वह यह है कि  मीरी पीरी के मालिक गुरू पिता गुरु हर गोविंद की छत्र छाया में शिक्षा दीक्षा हुई। इन्होंने गुरूवाणी, धार्मिक ग्रन्थों के साथ ही घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की। 

सिक्खों के आठवें गुरु हरि कृष्ण जी की अकाल मृत्यु हो जाने के बाद इन्हें सिक्ख धर्म का नवाँ गुरू सर्व सम्मति से चुना गया था। पिताजी के साथ मुगलों से हुए युद्ध में मात्र चौदह वर्ष के वीर की वीरता की तुलना हेतु सारे शब्द ओछे ही लगते हैं। गुरू तेग बहादुर सिंह जी को हिन की चादर भी कहा जाता है। गुरू तेग बहादुर सिंह जैसे जन मानस में चाँद सितारों तक अमर रहेंगें ।


गुरु तेगबहादुर पर निबन्ध | essay on Guru Teg bahadur in hindi.

भारत की इस पावन धरा पर आततायी व आक्रांताओं मुगलों से लोहा लेने वाले सपूतों में  सिक्ख सम्प्रदाय  का कयी नाम आदर से लिया जाता है उसी मे से एक गुरु तेगबहादुर सिंह जी का भी है, ये सिक्खों के नवें गुरू भी थे। इतना ही नहीं इनके द्वारा लिखे गये 116 पद्य आज भी सिक्खों द्वारा बड़े आदर व सम्मान के साथ, जो गुरू ग्रन्थ साहिब में मौजूद हैं, पढ़े जाते हैं, कीर्तन किए जाते हैं।

कश्मीरी पंडितों के साथ ही इन्होंने भी आततायी मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा जबरन इस्लाम स्वीकार्य नहीं है का उद्घोष  बुलंद किया । जिसमें सन् 1675 ई. में उपस्थित जन समूह के सामने  उस क्रूर शासक ने धड़ से सर अलग करा दिया था। गुरूद्वारा शीशगंज तथा गुरूद्वारा रकाबगंज, उन स्थलों का आज भी सारण सिक्खों द्वारा कराया जाता है। यही नहीं, जहाँ गुरू जी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया। 

Guru Teg bahadur biography in Hindi.


गुरु तेगबहादुर का जीवन परिचय | Guru Teg bahadur biography in Hindi.

गुरू तेग बहादुर सिंह जी का जन्म पंजाब के अमृतसर नगर में 1 अप्रैल 1621 में हुआ था। ये गुरु हर गोविंद सिंह जी के पाँचवे पुत्र थे । इनकी माता का नाम नानकी देवी था । इनकी बहन का नाम वीरो था । Guru Teg bahadur की शादी माता गुजरी से हुई थी । आठवें गुरू हरि कृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण ये जनमत द्वारा नवें गुरू के रूप में चुने गये। इसके बाद इन्होनें आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया  तथा वहीं रहने भी लगे थे।

गुरू तेगबहादुर सिंह जी का बचपन का नाम त्यागमल था। इतिहास  में एक बात बड़े आदर से कही जाती है और वह यह थी कि त्यागमल जी मात्र  14 बर्ष की आयु में ही अपने पिताजी के साथ मुगलों से युद्ध किया था। इनकी वीरता न निर्भीकता से प्रभावित होकर इनका नाम त्यागमल से तेगबहादुर कर दिया। गुरु तेग बहादुर ने बाबा वकाला नामक स्थान पर बैठकर लगभग बीस बरसों तक कठिन तपस्या की।

गुरु तेगबहादुर की शिक्षाएं | Guru Teg bahadur ki guru vani.

संसार को ऐसे बलिदानियों से यह सीख मिलती है कि जिन्होंनें अपने प्राणों की परवाह न करके धर्म व सत्य का त्याग नहीँ किया और न ही लालच के वशीभूत होकर उस नीच व क्रूर, आततायी व आक्रान्ता मुगल औरंगजेब के सामने सर झुकाना ही पसन्द किया। हमारे आदर्श गुरू जी ने आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देना मुनासिब समझा कि जिस देश, जाति, पंथ, धर्म में हम जिए, जिसका अन्न व जल ग्रहण किया । 

उस भारत माँ की रक्षा न करके उन नर पिशाचों के सामने सिर झुका दें, किसी भी स्तर पर ठीक नहीं है। ऐसी नारकीय जीवन से बेहतर शहीद हो जाना ही श्रेयस्कर है। गुरू तेग बहादुर सिंह जी उस क्रूर, आततायी नीच से जमकर लोहा लिए, अन्ततः शहादत को प्राप्त हो गये।

श्री गुरू तेग बहादुर सिंह जी अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के अधिकारों व विश्वासों के लिए मुगलों से आजीवन लोहा लिए, मगर आज की ही तरह उस समय के गद्दारों के आगे उनकी न चल सकी और बलिदान हो गये।

श्री गुरू तेग बहादुर सिंह जी जहाँ जहाँ गये लोग उनकी बातों व पराक्रम से शिक्षाओं से बिना प्रभावित हुए नही रह पाते थे। अधिक क्या कहा जाय उदाहरण हेतु यही कहा जा सकता है कि नशा उन्मूलन में तम्बाकू प्रयोग न करने के बजाय औद्योगिक खेती के रूप में की जाने वाली तम्बाकू की खेती को करना ही छोड़ दिये। 

वैसे गुरू तेग बहादुर सिंह जी की शिक्षा क्या थी जो उल्लेख मिलता है वह यह है कि  मीरी पीरी के मालिक गुरू पिता गुरु हर गोविंद की छत्र छाया में शिक्षा दीक्षा हुई। इन्होंने गुरूवाणी, धार्मिक ग्रन्थों के साथ ही घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की। सिक्खों के आठवें गुरु हरि कृष्ण जी की अकाल मृत्यु हो जाने के बाद इन्हें सिक्ख धर्म का नवाँ गुरू सर्व सम्मति से चुना गया था। पिताजी के साथ मुगलों से हुए युद्ध में मात्र चौदह वर्ष के वीर की वीरता की तुलना हेतु सारे शब्द ओछे ही लगते हैं। गुरू तेग बहादुर सिंह जी को हिन की चादर भी कहा जाता है।


गुरू तेग बहादुर और औरंगजेब की कहानी । Guru teg bahadur and Orangajeb story.

मुगल शासक औरंगजेब की कट्टरता और जिद्दपन इसी में झलकती है कि वह अपने बूढ़े पिता को आगरे के किले में कैदकर शेष तीन भाइयों का कतल करके निष्कंटक और मनमाना शासन करने का मनसूबा पाले हुए था। उसने सबसे पहले तो इतने कर, लगान  हिन्दुओं पर लाद दिये कि उनकी भरपाई करना उनके लिए मुश्किल हो गया । कारण कि हिन्दुओं का आराम से खाना, पीना, शानो शौकत उसे अखरती थी । उसे इस्लाम का प्रचार प्रसार जो करना था । 

उसका  विचार था कि अगर हिन्दुओं का जीना हराम कर दिया जायेगा और दूसरी तरफ मुसलमानों को आराम दिया जायेगा तो बहुत से हिन्दू वैसे ही आसानी से मइस्लाम कुबूल कर लेंगें। मगर जब ऐसा होता हुआ उसे दिखा नही तो उसने अपने सिपहसालारों को फरमान जारी कर दिया कि येन केन प्रकारेण इनको इस्लाम कुबूल करवाओ । फिर भी यदि नह़ी करते तो त्राहि त्राहि मचा दो । यही नही उसने अयोध्या, मथुरा, काशी, सोमनाथ आदि तमाम जगहों के मन्दिर तोड़कर मस्जिद तामीर करवाने का हुक्म कर दिया जिसे चारों तरफ हाहाकार मच गया।

कश्मीरी पंडितों का गुरू तेग बहादुर की शरण में आना 

जब औरंगजेब का सिपहसालार अफगान खाँ कश्मीर में कहर बरपा रहा था तो वहाँ के कश्मीरी पंडित और हिन्दूजन पता लगाते हुए गुरू तेग बहादुर जी की शरण में आये और उनसे रक्षा की गुहार की । गुरू तेग बहादुर जी ने उनकी बातें गौर से सुनीं तथा रक्षा करने का ढाँढ़स बँधाया। यह समाचार जब जिल्लेइलाही औरंगजेब तक पहुँचा तो उसने खीझकर गुरू तेगबहादुर जी को दिल्ली बुलवाया। गुरूजी ने संदेशवाहक को कहा कि आप चलिये हम आ रहे हैंँ।

इसके बाद गुरू तेगबहादुर  सिंह जी ने घर बाहर का सारा प्रबन्ध मामा कृपाल चन्द्र  जी को सौंपकर तथा हर बात अपने साहबजादे को समझाकर आगरा के रास्ते अपने वफादार पाँच सिक्खों के साथ  दिल्ली जाने हेतु चल पड़े। दिल्ली पहुँचने पर औरंगजेब  ने गुरू तेग बहादुर सिंह जी को कैद कराकर कैदखाने में डलवाकर कड़ा पहरा लगवा दिया ।

इसके बाद कैदखाने में जाकर गुरू तेग बहादुर जी से कहा कि यदि तुम मुसलमान हो जाते हो तो हिंदुस्तान के सारे हिन्दु मुसलमान हो जायेंगें तथा सारे झगडे़ फसाद  समाप्त हो जायेंगे। इसके जबाब में गुरूजी ने औरंगजेब  को समझाया कि जब तक परमात्मा नहीं चाहेगा, तब तक तुम्हारे चाहने से कुछ नहीं होगा।

 इस पर औरंगज़ेब ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है, इस पर गुरू जी ने कहा कि एक मन मिर्च जलाकर देख लो यदि एक मिर्च साबूत निकली तो एक मत अन्यथा जितनी मिर्च साबूत निकलेंगी, हिन्दुस्तान में उतने मत मतान्तर के लोग रहेंगे प्रयास तुम चाहे जितना कर लो।

औरंगजेब ने यह प्रयोग करके देखा तो वह दंग रह गया क्योंकि गुरू तेगबहादुर जी ने तीन मिर्च साबूत निकलने की बात जलाने के पहले ही कही थी, गुरू जी ने जो कहा था वही सच साबित हो गया । इसके बाद औरंगजेब और आग बबूला हो गया।

गुरु तेगबहादुर का शहादत दिवस । Guru Teg bahadur death.

 गुरू तेगबहादुर जी के साथ गये हुए कुछ सिक्खो को मरवाकर औरंगजेब डरवाना चाहता था कि हो सकता हैं कि हत्या देखकर गुरू जी भी डर जाँय मगर ऐसा हुआ नहीं।  गुरु तेगबहादुर ने देखा कि तीन सिक्ख भाई गुरूदत्ता, भाई ऊदौ तथा भाई चीमा ही हैं तो गुरूजी ने कहा कि तुम लोग भाग जाओ । तो उन लोगों ने कहा कि फाटक पर ताले और हाँथ पैर में हथकड़ी और बेड़ी है, सम्भव कैसे होगा तो गुरू जी ने कहा कि तुम लोग

काटी बेड़ी पग हुते, गुरू कीनी बंद खलास।।

इसी का पाठ करो और भाग लो। इसका पाठ करने से ताले और बेंडि़याँ सब टूट जायेंगी। ऐसा करते हुए भी वही हुआ जैसा गुरुजी ने कहा था, लोग भाग लिए। अन्त में भाई गुरूदत्ता ही गुरू जी के पास शेष बचे तब गुरूजी  अपनी मस्ती में आकर एक श्लोक पढ़ा 

  संग सखा सब तजि गये, कोऊ न निबहियो साथ।।
  कहु नानक यहु विपति में  टेक एक रघुनाथ।।

इसी श्लोक के साथ गुरू तेग बहादुर सिंह जी ने पाँच पैसे और एक नारियल एक सिक्ख के हाँथ  आनंद पुर भेजकर गुरू गद्दी अपने साहिबजादे श्री गोविंद सिंह  राये जी को सौंप दी। अन्त में जब 24 नवम्बर 1675 का अभाग्यशाली दिन वीरवार आ गया तो गुरू तेगबहादुर जी को चाँदनी चौक कोतवाली के पास सूर्यास्त के समय, उस नृशंस हत्यारे औरंगजेब के आदेशानुसार तलवार के एक वार से गुरू तेगबहादुर सिंह जी को शहीद कर दिया गया। इस निर्दय शाके का वर्णन गुरू गोविंद सिंह जी ने इस तरह किया है -

गुरू तेगबहादुर के चलत, भयो जगत को शोक, 
है सब जग भयो, जै जै जै सुरलोक ।।

अन्त में शीश को भाई जैता अपने कपड़ो में लपेटकर आनन्दपुर ले आया और वहीं अन्तिम संस्कार किया, यह स्थान आज भी शीशमहल के नाम से प्रसिद्ध है। गुरूजी के धड़ को एक सिक्ख ने बैलगाड़ी से लाकर जिस जगह आग को समर्पित किया, वह स्थान गुरुद्वारा रकाबगंज के नाम से प्रसिद्ध है । इसी दिन सिख धर्म सहित पूरा भारत 24 नवम्बर के दिन इस महान यौद्धा, हिन्द की चादर की शहादत को Shaheedi diwas के रूप में मनाया जा रहा है ।

गुरु तेगबहादुर जयंती । Guru Tegbahadur Jayanti 2022

Guru Tegh bahadur एक महान व्यक्तित्व के धनी, महान योद्धा थे । गुरु तेगबहादुर की जयंती की तिथि सरकार या कमेटी की ओर से घोषित की जाती है जो इस वर्ष 2022 में 21 अप्रैल 2022 को मनाई जाएगी । गुरु तेगबहादुर के जन्म 1 अप्रैल को हुआ है । इस दिन सामूहिक एवं लंगर आदि का आयोजन किया जाता है । इस संसार में गगन में जब तक सूरज रोशनी देता रहेगा । तब तक आप अजर अमर रहेंगे और उस हत्यारे औरंगजेब का नाम कलंकित होता रहेगा।

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