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रानी लक्ष्मीबाई की कहानी । Rani Lakshmi bai story in hindi

रानी लक्ष्मीबाई की कहानी । Rani Lakshmi bai story in hindi.


Rani Lakshmi bai story in hindi


Rani Lakshmi bai story in hindi. कहते हैं कि भारत को आजादी यू ही न मिली बल्कि सैकड़ों प्रयासों, त्याग व बलिदान से मिली । भारत की आजादी के लिए सभी धर्म के लोगों ने मिलकर प्रयास किया । न केवल पुरूष बल्कि महिलाओं ने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा मनवाया । 

भारत में एक से बढ़कर महिला स्वतंत्रता सेनानी हुई जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी । उनमें से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ( Rani lakshmi bai ) एक थी । जो एक उत्तरप्रदेश के झांसी की वीरांगना थी । उन्होंने अस्त्र शस्त्र की शिक्षा बचपन में प्राप्त कर ली थी । कहा जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई की तलवार का वजन 35 किलो था । वह अंग्रेजी सेनापति द्वारा पीछे वार करने पर शहीद हुईं तो चलिए जानते है - Rani Lakshmi bai story in hindi.

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झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी । Rani Lakshmi bai biography in hindi.

  1. नाम - रानी लक्ष्मीबाई
  2. वास्तविक नाम - मनु
  3. जन्म - 19 नवम्बर 1828
  4. जन्म स्थान - काशी
  5. पिता का नाम - मोरोपंत तांबे 
  6. माता का नाम - भागीरथी
  7. पति का नाम -  राजा गंगाधर राव निवालकर
  8. दत्तक पुत्र का नाम - दामोदर राव
  9. मृत्यु - 18 जून 1858


रानी लक्ष्मीबाई का जन्म और बालपन | Rani lakshmi bai story in hindi.

 साहस, बहादुरी, देशभक्ति और नारी शक्ति की प्रतीक रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 में काशी ( वर्तमान समय में वाराणसी ) में हुआ था । इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था । इनके पितामह बलवंत राव, बाजीराव पेशवा की सेना में सेनानाक थे । इनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था और प्यार से सब इन्हे मनुबाई बुलाया करते थे।  

4 वर्ष की छोटी सी आयु में मनुबाई के सिर से माता का साया उठ गया और ये अपने पिता के पालन पोषण में बढ़ने लगी । अधिकतर समय पुरुषों के बीच बिताने के कारण मनुबाई ने शास्त्रों के साथ साथ शास्त्र विद्या  में भी निपुणता हासिल की। वे घुड़सवारी में भी बहुत निपुण थी । बचपन से ही अपने पिता के मुखबिर से पौराणिक वीरगाथाएं सुनकर मनुबाई ने इसी साहस और देशप्रेम को अपने ह्रदय में संजोया ।

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह । Rani Lakshmi bai marriage.

सन 1842 में इस असाधारण कन्या का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ संपन हुआ । उस समय मनुबाई की आयु केवल 15 वर्ष थी । राजा गंगाधर राव विधुर थे । विवाह के उपरांत मनुबाई का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया और इसी नाम से वे समस्त विध्व में विख्यात हुई । सन 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया । पुत्र जन्म की खुशी में पूरी झांसी में उत्सव मनाया गया । परंतु केवल 4 महीने की आयु में ही इनके पुत्र की मृत्यु हो गई और पूरी झांसी शोक में डूब गई । राजा गंगाधर राव पुत्र मृत्यु के सदमे  से बीमार पड़ गए और आखिर 21 नवंबर 1853 में उनकी मृत्यु हो गई ।

मृत्यु से पहले राजा गंगाधर राव ने दामोदर राव को अपने दत्तक पुत्र के रूप में स्वीकार कर उसकी सूचना अंग्रेज सरकार को पहुंचा दी थी परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी ने राज्य हड़प नीति के अंतर्गत दामोदर राव को दत्तक पुत्र मानने से इंकार कर दिया ।

राजा गंगाधर राव की मृत्यु के पश्चात रानी लक्ष्मीबाई पूरी तरह से अकेली पड़ गई परंतु फिर भी उन्होंने हिम्मत नही हारी और घोषणा की " मैं अपनी झांसी किसी को नही दूंगी ।" रानी ने ब्रितानी वकील जान लैग से सलाह करके लंदन की अदालत में दामोदर राव को दत्तक पुत्र का स्थान दिलवाने के लिए अदालत में मुकदमा दायर किया परंतु ब्रिटेन की अदालत ने उनका मुकदमा खारिज कर दिया ।

7 मार्च 1854 में अंग्रेजों ने झांसी पर अधिकार कर लिया और राजकोष को जब्त कर लिया । मजबूरन रानी लक्ष्मीबाई को  झांसी का किला छोड़ नगर में रानीमेहल में जा कर रहना पड़ा । रानी ने अंग्रेजों से मिलने वाली पेंशन को अस्वीकार कर दिया और मन ही मन अपनी झांसी को वापिस लेने की ठान ली । यहीं से भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को हवा मिली और विद्रोह की ज्वाला पूरे भारत में फैलने लगी ।

Rani lakshmi bai ki ladai.


रानी लक्ष्मीबाई की लड़ाई । Rani lakshmi bai ki ladai.

अंग्रेजों की राज्य हड़प नीति के कारण उतरी भारत के शासकों में विद्रोह की ज्वाला धधकने लगी थी । रानी ने इसी क्रांति की ज्वाला को बढ़ावा दिया और अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की योजना बनाई । उनका साथ देने के लिए तात्या टोपे, नाना साहेब के वकील अजीमुल्ला, मुगल सम्राट बहादुरशाह, बेगम जीनत महल, वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल आदि कई महान हस्तियां आगे आई ।

पूरे देश में एक साथ क्रांति लाने के लिए 31 मई 1857 की तारीख तय की गई परंतु इससे पहले ही 7 मई 1857 को कानपुर में मंगल पांडे नामक सैनिक ने विद्रोह कर युद्ध का बिगुल बजा दिया । उसके पश्चात 4 जून 1857 कानपुर में विद्रोह छिड़ गया और 28 जून को कानपुर पूरी तरह स्वतंत्र हो गया । अंग्रेज विद्रोह को दबाने की कोशिश करते हुए सागर, गढ़कोटा, मदनपुर आदि राज्यों पर कब्जा करते हुए झांसी की और बढ़ने लगे ।

चूड़ी वाला हाथ नही होता, कभी कमजोर या लाचार,
मन में हो साहस अगर तो, हर नारी है दुर्गा का अवतार ।

रानी लक्ष्मीबाई की वीरता । Rani lakshmi bai ki virta.

रानी लक्ष्मीबाई पहले से ही सतर्क थी और अपनी छोटी सी सेना का बड़ी कुशलता से नेतृत्व करने लगी । अंग्रेजों के विरुद्ध उन्होंने एक नारी सेना का भी गठन किया । 23 मार्च 1858 में झांसी का ऐतिहासिक युद्ध आरंभ हुआ और रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में तोपची गुलाम गौस खां ने लक्ष्य साध ऐसे गोले फैंके कि अंग्रेजों की सेना में भगदड़ मच गई । रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांध कर दोनो हाथों में तलवारों को ले कर अंग्रेजों पर टूट पड़ी । 

सात दिन तक बड़ी वीरता से वह अंग्रेजों से युद्ध करती रही । रानी की वीरता देख अंग्रेजों ने दांतों तले उंगलियां दबा ली ।  परंतु ज्यादा दिनों तक टिकना संभव नहीं था इसलिए आखिर सरदारों का आग्रह मान कर उन्होंने पीठ पर अपने पुत्र दामोदर राव को बांध कर किले की 100 फीट की दीवार से अपने घोड़े समेत छलांग लगा दी और कालपी की और प्रस्थान किया । इस युद्ध में उनका घोड़ा बहुत बुरी तरह घायल हो गया और अंत वीरगति को प्राप्त हुआ । 

अंग्रेज रानी को जीवित पकड़ना चाहते थे परंतु रानी ने असीम शौर्य का प्रदर्शन किया और अंग्रेजो को चकमा दे कर निकल गई । कालपी जा कर रानी चुप नही बैठी और उन्होंने तात्या टोपे से संपर्क स्थापित किया । उनके साथ मिलकर रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर आक्रमण किया और  विजय हासिल की ।

रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु । Rani lakshmi bai death.

18 जून 1858 में अंग्रेजों से अंतिम युद्ध करते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने अद्भुत वीरता एवं साहस का परिचय दिया । इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह घायल हो गई। रानी लक्ष्मीबाई के विश्वस्त सरदार उन्हें बाबा गंगादास की झोंपड़ी में ले गए जहां रानी ने अंतिम सांस ली । रानी की अंतिम इच्छानुसार उसी झोंपड़ी को चिता बना कर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया और रानी लक्ष्मीबाई को जीवित पकड़ने का अंग्रेजों का सपना धरा का धरा रह गया ।

रानी लक्ष्मीबाई की जयंती । Rani lakshmibaee ki jaynti.

रानी लक्ष्मीबाई ने समस्त विश्व के सामने वीरता की एक अनूठी मिसाल कायम की और हर भारतवासी के दिल में सदा सदा के लिए अमर हो गई ।  18 जून उनका बलिदान दिवस आज भी शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है । जबकि 19 नवम्बर के दिन जयंती मनाई जाती है । इस दिन दीपदान करता है और अपनी वीर रानी को याद करता है । अंग्रेजों के विरुद्ध नारी सेना का गठन कर रानी लक्ष्मीबाई ने साबित कर दिया की नारी अबला नहीं होती । ऐसी वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को हमारा शत शत प्रणाम ।। डा. अंबिका मोदी, दिल्ली ।।

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