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मीराबाई का जीवन परिचय । Meerabai biography in hindi.

मीराबाई का जीवन परिचय । Meerabai biography in hindi.


Meerabai biography in hindi.

Meerabai biography in hindi. भक्तिकाल में श्री कृष्ण भक्ति मे लीन मीरा के बारे में आप और हम सब जानते हैं। लेकिन मीराबाई भक्ति में लीन किस प्रकार हुई । इस बात पे हम जानने की कोशिश करते हैं । मीराबाई का जीवन हिंदी गीति काव्य की परंपरा मेंअपना अजूबा स्थान रखता हैं । और प्रेम की पीड़ा का जैसा मन को छूने वाला वर्णन मीराबाई की रचनाओं में देखने को मिलता है। जैसा हिंदी साहित्य में कहीं और सुलभ नहीं है।

Meera bai ने अपना सम्पूर्ण जीवन श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर वैराग्य में व्यतीत किया था । हालांकि उनके पति ने उसे कई बार मारने का प्रयत्न किया मगर उसे मार नहीं पाया । जब वह पति की आज्ञानुसार मरने चली तो साक्षात श्रीकृष्ण के दर्शन हो गए तो चलिए जानते है - मीराबाई का जीवन परिचय । Meerabai biography in hindi.

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मीराबाई का जीवन परिचय । Meerabai biography in hindi.

  1. नाम - मीराबाई
  2. जन्म स्थान - कुड़की, जिला पाली
  3. जन्म तिथि - 1498 ई.
  4. पिता - रतन सिंह
  5. माता - वीर कुमारी
  6. पति का नाम - महाराणा भोजराज
  7. भक्त - श्रीकृष्ण
  8. रचना - नरसी जी का मायरा
  9. मृत्यु - सन 1557 ई. द्वारका
  10. जयंती - शरद पूर्णिमा

मीराबाई का जन्म कब हुआ था जीवन परिचय । Meerabai biography in hindi.

मीराबाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता के पास चौकड़ी गांव में सन् 1498 ईस्वी के लगभग हुआ था। मीराबाई के पिता का नाम रतन सिंह जी था। जो एक छोटे से राजपूत रियासत के राजा थे। मीराबाई की माता जी का नाम वीर कुमारी था। मीराबाई जब बहुत छोटी थी तभी इनके सिर से माता का साया उठ गया था। 

जिसके बाद उनकी परवरिश उनके दादा राव दूदा जी ने की थी । वे एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे जो कि भगवान विष्णु के घोर साधक थें। वही मीराबाई पर अपने दादाजी का गहरा असर पड़ा था । मीराबाई बचपन से कृष्ण की भक्ति में रंग गईं थीं। 

मीरा ने किसे अपना पति माना औऱ क्यो ? Meerabai Marriage.

मीराबाई का विवाह उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र महाराणा भोजराज जी के साथ हुआ था । लेकिन उन्हें विवाह की रस्में कुछ समझ नहीं आती, और वह भगवान की भक्ति में लीन रहती थी। जब राजा भोज को अपनी गलती का एहसास हुआ। कि मीराबाई  का सच्चा निस्वार्थ  व कृष्ण के प्रति निश्चल प्रेम से, कृष्ण को अपना जीवन समर्पण कर चुकी है उसके रूम रूम में कृष्ण बसा हुआ है । तो हमें उनकी भक्ति का सम्मान करना चाहिए। 

तब राजा भोज मीराबाई को वापस, चित्तोड़ लाने के लिए वृंदावन पहुँच गए। वहॉं उन्होंने मीराबाई से माफी  मांगी ।  और मीराबाई से कृष्ण भक्ति में साथ देने का वादा किया। उसके बाद मीराबाई राजाभोज के साथ वापस आने को तैयार हो गई। और राजाभोज के साथ चित्तौड़ चलीं आई। लेकिन कुछ समय बाद ही, मीराबाई पर पहाड़ टूट पड़ा। और इनके पति की मृत्यु हो गई थी।

ससुराल वालो ने मीराबाई को, अपने पति के साथ सती होने का प्रस्ताव रखा। लेकिन मीराबाई ने कृष्ण को अपना वास्तविक पति बताकर सती होने से मना कर दिया था । ससुराल वाले मीराबाई को बहुत प्रताड़ित करते थे । इसके बाद मीराबाई कृष्ण को अपना पति मान कर उनकी अराधना में लीन रहने लगी थी। इतना आसान नहीं था कृष्ण की अराधना करना मीराबाई को कई कष्ट झेलने पडे और काफी विरोध का सामना करना पड़ा। Meerabai biography in hindi.

मीरा ने कृष्ण का प्रेम पाने के लिए क्या किया ?

मीरा बाई पति की मृत्यु के बाद ज्यादा समय भगवान कृष्ण की भक्ति में लगाती थी । इसलिए उन्हें परिवार की जिम्मेदारी का ध्यान नहीं रहता था। एक बार उन्होंने अपने ससुराल में कुल देवी की पूजा करने से भी मना कर दिया था। मीराबाई का मन कृष्ण के अलावा किसी और की पूजा में नहीं लगता था।क्योंकि संत मीराबाई कृष्ण भक्त थी, और कृष्ण की दीवानी थी। 

मीराबाई के तन मन में भगवान कृष्ण रम गए थे । और वह हर पल भगवान कृष्ण के पद गाती रहती थी। साधु संतों के साथ कृष्ण भक्ति में डूबकर नृत्य करना, इनके ससुराल पक्ष को पसंद नहीं था । वे उन्हें ऐसा करने से रोकते थे, वो कहते थे तुम मेवाड़ की महारानी हो, तुम्हें राजसी परंपरा निभाने के साथ साथ, राजसी वेशभूषा में रहना चाहिए। राजवंश कुल की मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। मीराबाई को काफी जिल्लतो का सामना करना पड़ा । इसके बावजूद भी मीराबाई की आराधना कम नहीं हुई। 

राणा ने मीरा के लिए क्या भेजा ? Rana ne kya bheja.

मीराबाई की कृष्ण भक्ति को देखकर उनके ससुराल वालों ने उन्हें जान से मारने की साजिश रची।  भक्ति के कारण मीराबाई के ससुराल वालों के रिश्ते दिन पर दिन बिगड़ने लगे थे। जब भी मीराबाई की भक्ति कम नहीं हुई, तब उन्होंने कई बार मीराबाई को विश देकर जान से मारने की कोशिश की। लेकिन भगवान कृष्ण की भक्ति से उनका बाल भी बांका नहीं हुआ जैसे -

राणा ने विष का प्याला भेजा -

विद्वानों और साहित्यकारों का मानना है कि ,हिंदी साहित्य की महान कवयित्री मीराबाई के ससुराल वालों ने जब उन को मारने के लिए जहर का प्याला भेजा। तब मीराबाई ने वह प्याला भगवान कृष्ण के भोग लगाकर खुद पीलिया। भगवान कृष्ण की निश्चल प्रेम भक्ति के कारण वो विष का प्याला भी प्रभु कृपा से अमृत हो गया था। Meerabai biography in hindi.

फूलों की टोकरी मैं सांप भेजा -

महान संत मीराबाई की हत्या करने के पीछे एक और कहावत कही जाती है कि मीराबाई के ससुराल वालों ने उन्हें मारने के लिए फूलों की टोकरी में एक सांप रखकर मीराबाई को भेजा था। मीराबाई ने जैसे ही वो टोकरी खोली सांप फूलो की माला में बदल गया था और मीराबाई ने वो हार कृष्ण को पहना दिया था। 

राणा विक्रम सिंह ने भेजी कांटों की सेज -

कृष्ण भक्त मीरा बाई को मारने के लिए राणा विक्रम सिंह ने कांटों की सेज बिस्तर भेजें ।लेकिन ऐसा कहा जाता है कि उनके द्वारा भेजी गई कांटों की सेज भी फूलों के बिस्तर में बदल गई थी । क्योंकि मीराबाई की कृष्ण भक्ति अनन्य प्रेम का और कठोर साधना का प्रतीक है। इसी वजह से राणा के सारे प्रयास मीराबाई को मारने के विफल रहे। भगवान कृष्ण खुद अपने परम भक्त मीराबाई की रक्षा करते थे । कई बार भगवान कृष्ण मीरा बाई को साक्षात दर्शन भी दिया करते थे। 

मीराबाई और अकबर | Meera and Akabar.

भक्ति मार्ग की संत शिरोमणि कवित्रीय मीराबाई जी की कृष्ण भक्ति दूर-दूर देशों में फैली हुई श्री । कृष्ण के प्रेम रस में डूबी मीराबाई द्वारा रचित पद, कविताएं और भजनों का समस्त उत्तर भारत में प्रचार होने लगा, और गाये भी जाने लगे। वही मीरा का कृष्ण के प्रति अद्भुत प्रेम और उनके साथ चमत्कारिक घटना की भनक मुगल सम्राट अकबर को लगी, तब उनके मन में मीराबाई से मिलने की इच्छा जागृत हुई । 

जबकि अकबर एक मुस्लिम मुगल शासक था। तब भी वह हर धर्म के बारे में जानने को लालायित रहता था। हालांकि मुगलों की मीराबाई के परिवार से आपसी रंजिश थी। जिसके चलते मुगल सम्राट अकबर का श्री कृष्ण की प्रेमिका मीराबाई से मिलना मुश्किल था। 

मुगल सम्राट अकबर मीराबाई की भक्ति भाव से इतना प्रेरित था । वैसे उसे अनुमति नहीं मिलती, इसलिए अकबर एक भिखारी का भेष रखकर के मीराबाई से मिलने गया । तब वहां उसने मीराबाई के कृष्ण प्रेम रस में डूबे भावपूर्ण भजन कीर्तन सुने। जिससे वह मंत्रमुग्ध हो गया और मीराबाई को एक कीमती हार उपहार स्वरूप  दिया। Meerabai biography in hindi.

मीराबाई की प्रमुख रचनाएं कौन - कौनसी थी ? Meera bai creations.

अकबर का मीराबाई से मिलने की खबर सारे गांव में सनसनी खेज खबर की तरह फैल गई थी। जिस कारण राजा भोज ने मीराबाई को नदी में डूब कर आत्महत्या करने का आदेश दे डाला। मीरा बाई पति की आज्ञा का पालन करते हुए नदी की तरफ निकल पड़ी । ऐसा माना जाता है मीराबाई नदी में डूबने जा रही थी। तब उन्हें श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन हुए, जिन्होंने न सिर्फ उनके प्राण की रक्षा की बल्कि उन्हें राजमहल छोड़कर वृंदावन आकर, भक्ति करने को कहा। जिसके बाद मीराबाई अपने भक्तों के साथ कृष्ण की तपोभूमि वृंदावन चली गई। और अपने जीवन का अधिक समय वहीं पर बिताया। 

मीराबाई परिवार को छोड़कर के वृंदावन आ गई । और वृंदावन से फिर वह द्वारिका चली गई । वही भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन भजन करने लगी। आज भी लोग मीराबाई के भजनों को बड़ी ही तल्लीन होकर के गाते हैं ।मीराबाई ने अपनी रचनाओं में अलंकारों का इस्तेमाल भी बहुत ही शानदार तरीके से किया है। 

Meera bai creations.


मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई जाके सर मोर मुकुट, मेरो पति सोई " संत मीराबाई कहती है, मेरा तो बस यह श्री कृष्ण है ।  जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरधर नाम पाया है। जिनके सर पर ये मोर के पंख का मुकुट है,  मेरा तो पति सिर्फ यही है। "

मीराबाई कृष्ण भक्ति में लीन हुई और भगवान कृष्ण की बेहद सरल और सहजता के भाव पूर्ण गेए पदों में, कृष्ण के प्रति प्रेम का वर्णन हैं। मीराबाई द्वारा लिखी गई कुछ प्रसिद्ध रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं । जैसे - नरसिंह जी का मायरा, राम गोविंद, राग सोरठ के पद गीत गोविंद की टीका, राग विहाग, गरबा गीत । मीराबाई की और भी गीतों का संकलन मीराबाई की पदमावली आदि । Meerabai biography in hindi.

मीराबाई की काव्यगत विशेषताएं -

(क) भाव पक्ष - मीराबाई कृष्ण भक्ति शाखा की सगुनोपासका भक्त कवित्री है । इनके कार्य का वण्र्य विषय एकमात्र नटवर नागर श्री कृष्ण का मधुर प्रेम मैं मगन होकर लिखी है। 
(1) विनय तथा प्रार्थना संबंधी पद - जिसमें प्रेम संबंधी आतुरता और आत्म स्वरूप समर्पण की भावना दिखाई गई है। 
(2)  कृष्ण के सौंदर्य वर्णन संबंधी पद जिसमें मानते श्री कृष्ण के मनमोहक रूप की झांकी प्रस्तुत की गई है। 
(3) प्रेम संबंधी पद - इसमें मीराबाई के श्री कृष्ण प्रेम संबंधी उत्कृष्ट प्रेम का चित्रांकन है चित्रांकन है इसमें संयोग और वियोग दोनों पक्षों का मार्मिक वर्णन किया गया है। 
(4) रहस्यवादी भावना के पद - जिसने मीरा के निर्गुण भक्ति का चित्रण हुआ है चित्रण। 
(5) जीवन संबंधी पद - इसमें मीराबाई के जीवन संबंधित घटनाओं का चित्रण हुआ है। 
(ख)  कला पक्ष - (1) भाषा शैली -

मीरा बाई की भाषाशैली प्रकाश डालिए ? Meerabai language.

मीराबाई की काव्य भाषा ब्रज भाषा है जिसमें हमें राजस्थानी गुजराती भोजपुरी भोजपुरी पंजाबी और फारसी भाषाओं के शब्द है। मीराबाई की भाषा भावों की अनुदामिनी है उसमें एकरुपता नहीं है फिर भी स्वभाविकता सरसता और मधुरता सर कूट-कूट कर भरी हुई है । 

  •  शैली गीत काव्य की भावपूर्ण शैली है। 
  •  रस शृंगार रस (संयोग वियोग) शांत, 
  • मीराबाई के पदों में राग रागिनी से पूर्ण पदों में छंद की महिमा देखने को मिलती है। 
  • मीराबाई के पदों में अलंकार भी जैसे उपमा, रूपक, दृष्टांत का अपनी रचना में बहुत ही सहजता से उपयोग किया है। 

मीराबाई का खत तुलसीदास जी नाम -

कृष्ण भक्ति में लीन मीराबाई ने तुलसीदास जी को एक खत लिखा जो इस प्रकार है -

स्वस्ति तुलसी कुलभूषण दूषण हरण गोसाई। 
बारहिं बार प्रणाम करहूँ अब हरऊ सोक समुराई।। 
घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई। 
साधु संग अरू भजन करत नाहि देत कलेस महाई। । मेरे माता-पिता के समहो हरि भक्तन्ह सुखदाई। 
हमको कहां उचित करीबों है सो लिखिए समझाइए । 

इस प्रकार मीराबाई ने तुलसीदास जी से सलाह मांगी थी कि मुझे मेरे परिवार वाले व्यक्ति को छोड़ने के लिए प्रताड़ित कर रहे हैं लेकिन मैं प्रश्न को अपना मान चुकी हूं मेरा तन मन रोम-रोम मैं कृष्ण बसा है।

नंदलाल को छोड़ना मेरे लिए दे जागने के समान है मुझे इस समस्या का समाधान बतलाइए और मेरी मदद करें फिर तुलसीदास जी ने मीराबाई की बातों को पढ़ने के बाद उनका जवाब इस प्रकार दिया -

जाके प्रिय न राम  बैदेही,
सो नर तजिए कोटी बैरी सम जधपि परम सनैहा । 
नाते सबै राम के मनियन सुह्नद सुसंख्य जहॉ लौ
अंजन कहां ऑखि जो फूटे, बहुतक कहो कहां लौ । 

 मीराबाई के गुरु कौन थे ?

श्री कृष्ण भक्ति में लीन महान कवित्री मीराबाई और उनके गुरु रविदास जी की मुलाकात और उनके रिश्ते के बारे में कोई साक्षी प्रमाण नहीं मिलता है। लेकिन ऐसा, माना जाता है कि मीराबाई अपने गुरु रैदास जी से मिलने के लिए अक्सर बनारस जाया करती थी । संत रैदास जी से मीराबाई की मुलाकात बचपन में हुई थी, वे अपने दादा के साथ धार्मिक कार्यक्रमों में वे संत रविदास जी के सत्संग में मिली थी। कई बार मीराबाई अपने गुरु रैदास जी के साथ सत्संग में भी शामिल हुई थी। 

कई साहित्यकार और विद्वानों के मुताबिक संत रविदास जी मीराबाई के आध्यात्मिक गुरु थे । वही मीराबाई जी ने भी अपने पवित्र मन से संत रविदास जी को अपना गुरु बनाया है मीराबाई जी द्वारा रचित उनका पद इस प्रकार है। Meerabai biography in hindi.

खोज फिरूं, खोजवा घर को, कोई न करत बखानी । 
सतगरू संत मिलि रैदास, दीन्ही सूरत सहदानी ।
वन पर्वत तीरथ देवालय, ढूंढा चहरे दिली दौर, 
मीरा श्री रैदास शरण बिन, भगवान और न ठौर । 
मीरा म्हाने संत है, मैं सन्ता री दास,
 जिन चेतन आता  सैन दासत गुरु रैदास ।
मीरा सतगुरु की, करत वंदना आस,
जिम चेतन आतम कह्या, धन भगवान रैदास । 
गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, धुर से कलम भिडी,
सतगुरु सैन दई जब आके, ज्योति में ज्योति मिली । 
मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई, 
गुरु हमारे रैदास जी सरनन चित सोय ।।

मीराबाई के दोहे से इस दोहे से स्पष्ट होता है कि मीराबाई संत रैदास जी तू अपना सच्चा अध्यात्मिक गुरु माना था। मीराबाई ने रैदास जी से ही संगीत सीखा, सबद, एवं तंदूरी (वीणा) बजाना सीखा था। मीराबाई ने अपने भजनों, पदो में सबसे ज्यादा भैरव राग का ही इस्तेमाल किया। 

श्री कृष्ण नगरी वृंदावन में मीराबाई का रहना -

कृष्ण भक्ति में लीन मीराबाई ने श्री कृष्ण के आदेश पर गोकुल नगरी में जाने का फैसला किया । वृंदावन में श्री कृष्ण की इस सबसे बड़ी साधिका को बहुत सम्मान मिला। मीराबाई जहां भी जाती थी। लोग उन्हें देवी के सम्मान मान देते थे। 

मीराबाई का प्रसिद्ध पद -

बसो मेरे नैनन में नंदलाल। मोहनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने विसाल। । अधर सुधा रस मुरली बजती, उर बैजंती माल। क्षुद्र घटिक कटि तट शोभित नूपुर शब्द रसाल। मीरा प्रभु संतन सुखदाई भक्त बछल गोपाल।। 

मीराबाई की मृत्यु कब और कहा हुई थी ? Meera bai death.

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भक्ति धारा की महान कवयित्री मीराबाई ने अपने जीवन का आखरी समय द्वारका में व्यतीत किया और करीब 1560 ईस्वी में जब एक बार मीराबाई बेहद द्वारकाधीश मंदिर में श्री कृष्ण प्रेम भाव में डूबकर भजन कीर्तन कर रही थी तभी वे श्रीकृष्ण के पवित्र ह्रदय में समा गई। 

मीराबाई की जयंती । Meera bai ki Jayanti.

विद्वान पंडितों और कैलेंडर के मुताबिक प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा के दिन मीराबाई की जयंती मनाई जाती है । मीराबाई को आज भी लोग कृष्ण की दीवानी और उनके परम भक्त के रूप में जानते हैं । इसके साथ ही उनके प्रेम रस में डूबे भजन को गाते भी हैं । इसके साथ ही हिंदी फिल्मों में भी मीराबाई के पदों का इस्तेमाल किया गया है । मीराबाई ने जिस तरह तमाम कष्ट झेलते हुए एकाग्र चित्त हो करके, अपने को प्रभु को चाहा, वो पल मीराबाई के वाकई सराहनीय है अर्थात हर किसी को सच्चे मन से प्रभु में आस्था रखनी चाहिए और अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहना चाहिए। 

नाम शिवा सिंहल आबूरोड

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